विश्व मजदूर दिवस/ International labour day

अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस


Labour in China market
1 मई यानी वह दिन जो दुनिया भर के श्रमिकों को समर्पित है। आज दुनिया भर के लगभग 85 से अधिक देशों में अपने स्तर पर मजदूर दिवस मनाया जाता है। मजदूर का मतलब सिर्फ निर्माण कार्य में लगे लोगों से ही नहीं है बल्कि हर वह व्यक्ति श्रमिक या मजदूर कहलाता है जो किसी संस्था या निजी व्यक्ति के लिए काम करता है और उसके बदले में वेतन लेता है।

भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत 1 मई 1923 से तब हुई थी जब मद्रास में मजदूरों ने प्रदर्शन किया और इस प्रदर्शन रूपी आग में घी डालने का कार्य मजदूर किसान पार्टी के नेता कामरेड सिंगरावेल्लू ने किया।

बात अगर वैश्विक स्तर पर इस दिवस के प्रारंभ होने की करें..तो इसकी शुरुआत 1886 में अमेरिका से मानी जाती है। उस समय अमेरिका के मजदूर यूनियनों ने काम के समय को 8 घंटे से ज्यादा ना रखने के लिए हड़ताल की थी। यह हड़ताल , विरोध प्रदर्शन काफी बड़े स्तर पर हुआ था। कहा जाता है... इस दौरान शिकागो की हेमार्केट में बम धमाका भी हुआ था।

वर्ष 1919 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन अस्तित्व में आया। इसका मुख्यालय जिनेवा में स्थापित किया गया और वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन में 186 सदस्य देश है।
भारत भी इस का संस्थापक सदस्य देश है। इस संगठन में हर स्तर पर सरकार दो सामाजिक भागीदारों से जुड़ी होती हैं। मतलब सरकार श्रमिकों और नियुक्तियों से जुड़ी रहतीं हैं। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का त्रिपक्षीय चरित्र ही उसे अनूठी पहचान देता है। इस संगठन के तीन अंग है।

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1अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन:  यह सम्मेलन वर्ष में एक बार प्रायः जून में आयोजित किया जाता है। इस सम्मेलन में कई भारतीय अपनी भूमिका निभा चुके हैं... जैसे अतुल चटर्जी, जगजीवन राम, नागेंद्र सिंह, रविंद्र वर्मा।

2. गवर्निंग बॉडी( शासी निकाय) :  इसे कार्यकारी परिषद कहा जाता है। एक वर्ष में मार्च, जून और नवंबर के महीने में प्रायः तीन बार बैठकें आयोजित की जाती हैं। शासी निकाय में कुछ भारतीय इसके अध्यक्ष भी बन चुके हैं.. जैसे अतुल चटर्जी, बी.जी. देशमुख, एस.एम. मेरानी।

3. अंतर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय: यह स्थाई सचिवालय होता है। जहां सभी सम्मेलन और बैठकें आयोजित की जाती हैं। तथा सम्मेलनों और शासी निकाय के द्वारा लिए गए निर्णयों का कार्य में इसी के द्वारा किया जाता है।
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मजदूर या श्रमिक वर्ग देश की बुनियाद होता है... उसके बिना कोई भी देश प्रगति के मार्ग पर नहीं चल सकता है।
महात्मा गांधी ने तो साफ शब्दों में कहा था ; कि उद्योगपति अपने आपको मालिक या प्रबंधक नहीं मानते बल्कि अपने आप को ट्रस्टी समझते हैं ; जबकि वो ट्रस्टी होते भी नहीं है।

वहीं लोकतांत्रिक ढांचे में ; जनता जनार्दन.. देश की बागडोर.. सरकार को ट्रस्टी के रूप में दे देती है। गांंधी जी का संकेत यही है... कि अगर कोई ट्रस्टी बनना चाहता है तो उसे अपने कामगारों के प्रति हितैषी बनना होगा।

यहां ट्रस्टी का मतलब व्यक्ति /संस्था/ सरकारें अपना प्रबंध चलाने के लिए कामगारों की बेहतरी, भलाई और विकास के लिए वचनबद्ध होते है।

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                                ✍ ✍ penned By - Ajay Mishra

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