भारत परिषद अधिनियम 1909
1892 का अधिनियम राष्ट्रवादियों को संतुष्ट न कर सका था। साथ ही राष्ट्रीय आंदोलन पर उग्रवादी नेताओं का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। भारत सचिव "लार्ड मार्ले" तथा वायसराय "लार्ड मिंटो" दोनों सहमत थे कि कुछ सुधारों की आवश्यकता है। "सर अरुंडेल कमेटी" की रिपोर्ट के आधार पर फरवरी 1909 में नया अधिनियम पारित किया गया जिसे "भारतीय परिषद अधिनियम1909" कहा गया। यह अधिनियम मार्ले मिंटो सुधार के नाम से विख्यात है।
प्रावधान:
1. केंद्रीय व प्रांतीय विधान परिषदों के आकार में काफी वृद्धि की गई। केंद्रीय परिषद में सदस्य संख्या 16 से बढ़कर 60 हो गई जिसमें 27 सदस्य निर्वाचित होते थे। प्रांतीय व्यवस्थापिका के सदस्यों की संख्या में भी वृद्धि की गई जैसे मुंबई, कोलकाता, मद्रास में 50 व अन्य प्रांतों में संख्या 30 की गई।
2. केंद्रीय परिषद में सरकारी बहुमत को बनाए रखा लेकिन प्रांतीय परिषदों में गैर सरकारी सदस्यों के बहुमत की अनुमति थी।
3. भारतीयों को प्रशासन तथा विधि निर्माण के कार्यों में प्रतिनिधित्व दिया गया।
4. पृथक निर्वाचन के आधार पर मुस्लिमों के लिए सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया। इसके अंतर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे। लॉर्ड मिंटो को 'सांप्रदायिक निर्वाचन के जनक' के रूप में जाना जाता है।
5. पहली बार किसी भारतीय को वायसराय और गवर्नर की कार्यपरिषद के साथ एसोसिएशन बनाने का प्रावधान किया गया। "सत्येंद्र नाथ सिन्हा" वायसराय की कार्यपरिषद के प्रथम भारतीय सदस्य बने। उन्हें विधि सदस्य बनाया गया।
6. इसके अंतर्गत दोनों स्तरों (केंद्रीय व प्रांतीय) पर परिषदों के चर्चा कार्यों का दायरा बढ़ाया गया मसलन अनुपूरक प्रश्न पूछना, बजट पर संकल्प रखना आदि किंतु सशस्त्र सेना, विदेश संबंध और देशी रियासतों को विधायिका के क्षेत्र से बाहर रखा था। यद्यपि प्रत्येक स्थिति में वायसराय को उनकी सलाह ठुकराने का अधिकार था।
7. स्त्रियों को मताधिकार नहीं दिया गया ।
8. भारत सचिव को मद्रास और बंबई में कार्यकारिणी के सदस्यों की संख्या 2 से 4 कर देने का अधिकार दिया गया। वायसराय भारत सचिव से अनुमति लेकर यही व्यवस्था बंगाल व अन्य प्रांतों में भी कर सकते थे।
इस अधिनियम की सबसे बड़ी त्रुटि यह थी कि पृथक (सांप्रदायिक) आधार पर निर्वाचन की पद्धति लागू की गई। यह पद्धति बहुत ही अस्पष्ट थी। संसदीय प्रणाली को दे दी गई परंतु उत्तरदायित्व नहीं दिया गया।
✍✍✍शोभित अवस्थी
1892 का अधिनियम राष्ट्रवादियों को संतुष्ट न कर सका था। साथ ही राष्ट्रीय आंदोलन पर उग्रवादी नेताओं का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। भारत सचिव "लार्ड मार्ले" तथा वायसराय "लार्ड मिंटो" दोनों सहमत थे कि कुछ सुधारों की आवश्यकता है। "सर अरुंडेल कमेटी" की रिपोर्ट के आधार पर फरवरी 1909 में नया अधिनियम पारित किया गया जिसे "भारतीय परिषद अधिनियम1909" कहा गया। यह अधिनियम मार्ले मिंटो सुधार के नाम से विख्यात है।
प्रावधान:
1. केंद्रीय व प्रांतीय विधान परिषदों के आकार में काफी वृद्धि की गई। केंद्रीय परिषद में सदस्य संख्या 16 से बढ़कर 60 हो गई जिसमें 27 सदस्य निर्वाचित होते थे। प्रांतीय व्यवस्थापिका के सदस्यों की संख्या में भी वृद्धि की गई जैसे मुंबई, कोलकाता, मद्रास में 50 व अन्य प्रांतों में संख्या 30 की गई।
2. केंद्रीय परिषद में सरकारी बहुमत को बनाए रखा लेकिन प्रांतीय परिषदों में गैर सरकारी सदस्यों के बहुमत की अनुमति थी।
3. भारतीयों को प्रशासन तथा विधि निर्माण के कार्यों में प्रतिनिधित्व दिया गया।
4. पृथक निर्वाचन के आधार पर मुस्लिमों के लिए सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया। इसके अंतर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे। लॉर्ड मिंटो को 'सांप्रदायिक निर्वाचन के जनक' के रूप में जाना जाता है।
5. पहली बार किसी भारतीय को वायसराय और गवर्नर की कार्यपरिषद के साथ एसोसिएशन बनाने का प्रावधान किया गया। "सत्येंद्र नाथ सिन्हा" वायसराय की कार्यपरिषद के प्रथम भारतीय सदस्य बने। उन्हें विधि सदस्य बनाया गया।
6. इसके अंतर्गत दोनों स्तरों (केंद्रीय व प्रांतीय) पर परिषदों के चर्चा कार्यों का दायरा बढ़ाया गया मसलन अनुपूरक प्रश्न पूछना, बजट पर संकल्प रखना आदि किंतु सशस्त्र सेना, विदेश संबंध और देशी रियासतों को विधायिका के क्षेत्र से बाहर रखा था। यद्यपि प्रत्येक स्थिति में वायसराय को उनकी सलाह ठुकराने का अधिकार था।
7. स्त्रियों को मताधिकार नहीं दिया गया ।
8. भारत सचिव को मद्रास और बंबई में कार्यकारिणी के सदस्यों की संख्या 2 से 4 कर देने का अधिकार दिया गया। वायसराय भारत सचिव से अनुमति लेकर यही व्यवस्था बंगाल व अन्य प्रांतों में भी कर सकते थे।
इस अधिनियम की सबसे बड़ी त्रुटि यह थी कि पृथक (सांप्रदायिक) आधार पर निर्वाचन की पद्धति लागू की गई। यह पद्धति बहुत ही अस्पष्ट थी। संसदीय प्रणाली को दे दी गई परंतु उत्तरदायित्व नहीं दिया गया।
✍✍✍शोभित अवस्थी
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