समान नागरिक संहिता

                        समान नागरिक संहिता


   फ्रांसिस  राइट ने  समानता पर बल देते हुए कहा "समानता स्वतंत्रता की आत्मा है वास्तव में इसके बिना कोई स्वतंत्रता नहीं है।" ईश्वर के समक्ष हम सभी मनुष्य समान है जब ईश्वर ने हम लोगों में कोई भी विभेद नहीं किया तो हम मनुष्य ने असमानता  क्यों उत्पन्न कर दी है।

  हाल ही में कर्नाटक में उत्पन्न हिज़ाब विवाद पर कर्नाटक उच्च न्यायालय ने निर्णय देते हुए कहा कि शिक्षण संस्थाओं द्वारा बनाए गए कानून सभी के लिए समान है जिसका पालन प्रत्येक विद्यार्थी को करना अनिवार्य है।

              समान नागरिक संहिता से आशय प्रत्येक व्यक्ति के लिए समान कानून का होना है चाहे वह किसी भी संप्रदाय या  जाति से संबंधित हो। इसका मुख्य उद्देश्य पंथ के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव को समाप्त करना है। समान नागरिक संहिता भारतीय संविधान की मूल भावना  में से एक "समानता का अधिकार" को पूर्ण करती है। 

      स्वतंत्रता से पूर्व भारत में सभी धर्मों के लिए अलग-अलग दीवानी कानून थे। हिंदू समाज मिताक्षरा तथा दायभाग से संचालित होता था वहीं मुस्लिम समाज अपनी व्यक्तिगत कानून संहिता "शरीयत"  के माध्यम से मामलों को निपटारा करता  था।  वर्तमान में हिंदुओं जिसमें बौद्ध, सिख तथा जैन भी शामिल है उनके लिए हिंदू कोड बिल द्वारा दीवानी  मामलों का निस्तारण  होता है किन्तु  मुस्लिम वर्ग अभी भी शरीयत के अनुसार ही मामला का निपटान करता है। 


                  समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान भाग 4 में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्त्व के अंतर्गत अनुच्छेद 44 में वर्णित है। गोवा एकमात्र राज्य है  जहां समान नागरिक संहिता  लागू है जिसे पुर्तग़ालियों ने लागू किया था। 


           हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने अपने राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए रंजना प्रकाश देसाई समिति का गठन किया।


           समान नागरिक संहिता के मार्ग में सांप्रदायिक राजनीति, आदिवासियों की परंपराएं तथा अनुच्छेद 25 तथा 26 के अंतर्गत धर्म संबंधित स्वतंत्रताये मुख्य चुनौतियां हैं। समान नागरिक संहिता के द्वारा विवाह विरासत, उत्तराधिकार  आदि मामलों की असमानताओं को समाप्त किया जा सकता है । समान नागरिक संहिता के अभाव में सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव  महिलाओं पर पड़ा  हैं। 


"पति- मैं तुम्हें हमारे रिश्ते में समानता का अधिकार देता हूं।

पत्नी- तुम्हारे द्वारा कही गई इस पंक्ति में शब्द "देता हूं" वास्तव में यही समानता है ।" 


             संविधान सभा में पंडित जवाहरलाल नेहरू तथा भीमराव अंबेडकर के संयुक्त प्रयास से हिंदू कोड बिल लाया गया था जिसका व्यापक विरोध हुआ इन दोनों नेताओं के पुतले जलाए गए जिससे क्षुब्ध होकर भीमराव अंबेडकर ने कानून मंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया। पंडित नेहरू ने हार न मानते हुए इसे विभिन्न खंडों में जैसे हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू दत्तक ग्रहण पोषण अधिनियम में  पारित करवाने में सफलता पायी।

             राजनीतिक लाभ हेतु सरकारे सदा इस प्रकरण से बचती रहीं हैं ।सर्वोच्च न्यायालय ने 1986 में शाहबानो वाद में निर्णय देकर शरीयत के ऊपर मानवता को वरीयता दी थी किंतु तत्कालीन सरकार ने इस फैसले को पलटते हुए मुस्लिम महिला संरक्षण अधिनियम पारित कर मुस्लिम महिलाओं के लिए उनके व्यक्तिगत कानूनों को अधिकृत कर दिया। इस फैसले में असहमति व्यक्त करते हुए तत्कालीन कैबिनेट मंत्री मोहम्मद आरिफ खान ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया  था। 


            भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 , 26 का सहारा लेकर धर्मांध कट्टरपंथी समान नागरिक संहिता के मार्ग में अवरोध बने हैं। 2017 में सायरा बानो वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने तीन तलाक "तलाक-ए-बिद्दत"  को समाप्त करते हुए कहा कि संविधान निर्माताओं के सपनों को पूर्ण करने के लिए समान नागरिक संहिता को लागू करना चाहिए।

              समान नागरिक संहिता को लागू हो जाने पर समाज के संवेदनशील वर्ग  को संरक्षण, एकरूपता की भावना, कानून का सरलीकरण, लैंगिक समानता जैसे सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे।

                 ऐसे समय जब हम विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में अग्रसर हैं हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना होगा जो भेदभाव रहित हो। अब समय आ गया है कि उचित संशोधनों के साथ हमें समान नागरिक संहिता अपनाना चाहिए जिससे देश की अखंडता,समता, एकता अक्षुण्ण रहे।



                 "नियम संहिता एक समान हो,

                 देश पर सबको गुमान हो।

                 हर मजहब का मान रहे पर ,

                 पहला मजहब संविधान हो।।"



                                             ✍✍ Shobhit Awasthi

No comments:

Featured Post

आरोग्य सेतु एप