मौर्य प्रशासन
मौर्य राजवंश (322 - 185 ईसा पूर्व) प्राचीन भारत का अत्यधिक शक्तिशाली राजवंश था । मौर्यों द्वारा 137 वर्षों तक भारत पर शासन किया गया । भारत में पहली बार राजनीतिक एकता मौर्यों के समय में ही देखी गई । मौर्य शासन काल में सत्ता का केंद्रीकरण किया गया। राजा को एक अति महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था किंतु राजा निरंकुश नहीं था। कौटिल्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में राज्य के सप्तांग सिद्धांत दिए थे जिनके द्वारा मौर्य शासन चलता था। सप्तांग में राजा , आमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, सेना, मित्र शामिल थे।
केंद्रीय प्रशासन
अर्थशास्त्र से हमें यह पता चलता है कि मौर्य काल में केंद्रीय प्रशासन में नियुक्त शीर्ष अधिकारियों को तीर्थ कहा जाता था। इनकी संख्या 18 थी। इन्हें महामात्य भी कहा जाता था। अधिकतर अधिकारियों को नकद वेतन दिया जाता था जिनमें मंत्री, सेनापति, पुरोहित, युवराज आदि अधिकारी शामिल थे। इन्हें 48 हजार पण की राशि मिलती थी । एक पण में तीन चौथाई तोले के बराबर चांदी का सिक्का होता था। इन अधिकारियों के नीचे द्वितीय श्रेणी के पदाधिकारी आते थे जिन्हें अध्यक्ष कहा जाता था इनकी संख्या 26 बताई जाती है । यूनानी लेखकों ने इन्हें मजिस्ट्रेट कहा है।चन्द्र गुप्त मौर्य 👈 click here
प्रांतीय प्रशासन
चंद्रगुप्त मौर्य ने शासन को बेहतर ढंग से चलाने के लिए अपने विस्तृत साम्राज्य को चार भागों में विभाजित किया था। इन प्रांतों को चक्र कहते थे। इन प्रांतों का शासन सम्राट के प्रतिनिधि देखते थे जिनमें मुख्यतः राजकुमार होते थे । प्रांतों पर शासन करने वाले राजकुमार को कुमार या आर्यपुत्र कहते थे तथा इनकी सहायता के लिए प्रत्येक प्रांत में महामात्र नामक अधिकारी होते थे। प्रशासन की शीर्ष इकाई केंद्र होता था। अशोक ने इन प्रांतों में कलिंग को शामिल कर दिया था। अब इनकी संख्या पांच हो गई थी।प्रान्त राजधानी
1.प्राची पाटलिपुत्र
2.उत्तरापथ तक्षशिला
3.दक्षिणापथ सुवर्णगिरी
4.अवंतिराष्ट्र उज्जयिनी
5.कलिंग तोसली
मेगस्थनीज़ की पुस्तक इंडिका से हमें ज्ञात होता है कि नगर का एक प्रशासक मंडल होता था जिसमें 30 सदस्य होते थे तथा यह मंडल 6 समितियों में विभक्त था। नगर को अपराध मुक्त रखने के लिए पुलिस व्यवस्था का प्रावधान था जिसे रक्षिण कहा जाता था। नगर का प्रमुख नागरक कहलाता था ।
नगर प्रशासन में तीन प्रकार के अधिकारी होते थे-
1.एग्रोनोमोई ( जिलाधिकारी )
2.अंटोनोमोई (नगर आयुक्त)
3.सैन्य अधिकारी
मौर्य प्रशासन की सबसे निम्न इकाई ग्राम थी। ग्राम के प्रधान को ग्रामिक कहते थे जो वर्तमान व्यवस्था के अनुसार चुना जाता था अर्थात ग्रामिक राजकीय अधिकारी नहीं होता था। वह ग्राम की जनता द्वारा चयनित होता था। ग्रामीण जनपदों की देखभाल के लिए राजुक नियुक्त किए जाते थे जिनके पास कर संग्रहण तथा न्यायिक शक्तियां होती थी । राजुक राजकीय कर्मचारी होते थे। ग्रामिक के ऊपर गोप होता था जो 10 ग्रामों का प्रमुख होता था। 100 ग्रामों का समूह संग्रहण कहलाता था जिसका प्रमुख स्थानिक होता था।
आर्थिक नियंत्रण
भारत की राजस्व प्रणाली की रूपरेखा तैयार करने का श्रेय मौर्यों को जाता है। राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि, पशुपालन तथा वाणिज्य पर आधारित थी। इन्हें सम्मिलित रूप से वार्ता कहा जाता था। कौटिल्य के अनुसार राज्य में 27 अध्यक्ष नियुक्त थे जो आर्थिक गतिविधियों का नियमन करने का कार्य करते थे। सिंचाई तथा जल के बंटवारे की व्यवस्था राज्य द्वारा की जाती थी । मेगस्थनीज के अनुसार मौर्य राज में अधिकारी द्वारा जमीन का मापन तथा नहरों का निरीक्षण किया जाता था। राजकीय भूमि का प्रमुख अधिकारी सीताध्यक्ष कहा जाता था। राजकीय भूमि पर कृषि का कार्य दास, बंदी तथा कर्मचारी आदि कार्य करते थे । राज्य की आय का मुख्य स्रोत भूमि कर था जो उपज का छठवां भाग होता था। कर निर्धारण का सर्वोच्च अधिकारी समाहर्ता होता था तथा सन्निधाता राजकीय कोषागार और भंडागार का संरक्षक होता था।
प्रमुख कर
1.सीता- राजकीय भूमि से होने वाली आय2.भाग-कृषकों द्वारा उत्पादित सामग्री का छठवां भाग
3.प्रदेश्य -आयात कर
4.निष्क्राम्य -निर्यात कर
5.विष्टि -बेगार (निशुल्क श्रम)
6.सेतुबंध- सिंचाई कर
7.हिरण्य- पशु कर
8.बलि- कृषको से ली गई भेट
9.प्रणय- आपातकालीन कर
मौर्य काल में व्यापार जल व थल दोनों मार्गों से होता था। घरेलू तथा बाहरी व्यापार विकसित थे। भारत का बाहरी व्यापार रोम, सीरिया फारस, मिस्र तथा अन्य पश्चिमी देशों के साथ होता था। काशी, उज्जयिनी, तक्षशिला, कौशाम्बी, पाटलिपुत्र, तोसली आदि आंतरिक व्यापार के प्रमुख केंद्र थे।
सामाजिक जीवन
मेगस्थनीज ने भारतीय समाज को 7 जातियों में विभक्त किया है- दार्शनिक, कृषक, पशुपालक, कारीगर (शिल्पी), सैनिक, निरीक्षक तथा सभासद। कौटिल्य द्वारा सभी वर्ण के लोगों के सेना में होने का विवरण दिया गया है। कौटिल्य ने शूद्रों को आर्य कहा है। संतान की उत्पत्ति ही विवाह का मूल उद्देश्य था । स्त्रियों को तलाक प्राप्त करने तथा पुनर्विवाह की अनुमति थी। वेश्यावृत्ति का प्रचलन भी मौर्य काल में था तथा इसे राजकीय संरक्षण प्राप्त था। स्वतंत्र रूप से वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्रियाँ रूपजीवा कही जाती थी। गणिकाओं (वेश्याओं) की गतिविधि पर ध्यान रखने वाले अधिकारी को गणिकाअध्यक्ष कहा जाता था। अच्छे घर की महिलाएं घर से नहीं निकलती थी इन्हें अर्थशास्त्र में अनिष्काशिनी कहा गया है।धार्मिक जीवन
मौर्य काल में वैदिक धर्म प्रचलन में था जो कुलीन वर्ग तक ही सीमित था। पतंजलि के अनुसार इस काल में मूर्तियों को बेचा जाता था। मूर्तिकार को देवताकारू कहा जाता था। ब्राह्मणों द्वारा कर्मकांड व अनुष्ठान कराए जाते थे तथा उन्हें राज्य द्वारा करमुक्त भूमि प्राप्त थी। कौटिल्य ने ऐसी भूमि को ब्रह्मदेय कहा है। पाली ग्रंथों में ब्राह्मणों को निस्साल कहकर वर्णित किया गया है।न्याय
मौर्य काल में सम्राट सर्वोच्च न्यायाधीश होता था। जबकि ग्रामसभा सबसे छोटा न्यायालय होता था। ग्राम सभा में ग्रामणी (ग्रामिक) तथा ग्राम वृद्ध अपना निर्णय देते थे। इसके ऊपर संग्रहण, द्रोणमुख, स्थानीय एवं जनपद के न्यायालय होते थे। मौर्य न्याय व्यवस्था कठोर तथा न्याय की प्रकृति आदर्शवादी थी।
कला
वास्तुकला में मौर्यों ने अतुलनीय योगदान दिया है। मौर्य काल में ही पत्थर की इमारत बनाने का कार्य भारी पैमाने पर प्रारंभ हुआ। मेगस्थनीज के अनुसार पाटलिपुत्र स्थित राजप्रासाद उतना ही भव्य था जितना ईरान की राजधानी में बना राजप्रासाद। मौर्य काल की सर्वोत्तम कृतियां एक ही प्रस्तर खंड से निर्मित स्तंभ हैं जिनके शीर्ष पर भव्य मूर्तियां स्थापित हैं। चाहे हम बात मथुरा की करें या चुनार से प्राप्त मूर्तियों की, सभी एक ही पत्थर से निर्मित है। सर्वाधिक प्रसिद्ध सारनाथ स्तंभ है। इसके शीर्ष पर चार सिंह स्थापित है तथा बीच में एक चक्र बना हुआ है जो धर्म चक्र का प्रतीक है।
पाक्सो एक्ट 👈 click hereसैन्य तथा गुप्तचर व्यवस्था
मौर्य काल में सैन्य व्यवस्था छः समितियों में विभक्त थी। प्रत्येक समिति में पाँच सैन्य विशेषज्ञ रहते थे। पैदल सेना, गज सेना, रथसेना अश्वसेना और नौसेना के प्रबंधन की जिम्मेदारी इन समितियों पर थी। सैन्य प्रबंधन के सर्वोच्च अधिकारी को अंतपाल कहते थे जो सीमांत क्षेत्रों का व्यवस्थापक भी था। मेगस्थनीज के अनुसार चंद्रगुप्त की सेना में 6 लाख पैदल, 50000 अश्वरोही, 9 हजार हाथी और 800 रथ सैनिक थे।मौर्य काल की गुप्तचर व्यवस्था अपने आप में अद्वितीय थी। कौटिल्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में गुप्तचर को गूढ़पुरुष कहा है। नर गुप्तचरो को संती, तिष्णा तथा शरद कहा जाता था। जबकि स्त्री गुप्तचरों को वृषली, भिक्षुकी तथा परिव्राजक कहा जाता था। एरियन ने गुप्तचरों को ओवरसीयर तथा स्ट्रेबो ने इंस्पेक्टर कहा कहा है।
गुप्तचर दो प्रकार के होते थे:-
१.संस्था- यह गुप्तचर एक ही स्थान पर संगठित होकर कार्य करते थे।
२.संचार- ये गुप्तचर भ्रमणशील होते थे।
मौर्य साम्राज्य का पतन
मौर्य वंश अपने समय में सबसे शक्तिशाली राजवंश था। लेकिन 232 ईसा पूर्व में अशोक के राज्य काल के समाप्त होते ही इसका विघटन शुरू हो गया। मौर्य वंश के अंतिम शासक वृहद्रथ की हत्या 184 ईसा पूर्व में उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी तथा सिंहासन पर अधिकार कर लिया। Penned by ✍ शोभित अवस्थी
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