चंद्रगुप्त मौर्य
मौर्य राजवंश प्राचीन भारत के सबसे शक्तिशाली राजवंशों में से एक था ; जिसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने नंदवंशीय शासक घनानंद को पराजित करके की थी। चंद्रगुप्त की विजय में तथा मौर्य वंश की स्थापना में चाणक्य का अहम योगदान था। चाणक्य (कौटिल्य / विष्णुगुप्त) न सिर्फ चंद्रगुप्त के प्रधानमंत्री थे बल्कि वह चंद्रगुप्त के गुरु भी थे। चंद्रगुप्त मौर्य ने 24 वर्षों (322-298 ईसा पूर्व) तक शासन किया।विष्णु पुराण, महाभारत तथा मुद्राराक्षस के अनुसार चंद्रगुप्त के पिता का नाम सूर्य गुप्त (सर्वार्थसिद्धि) तथा माता का नाम मुरा (शिव) था।
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चंद्र गुप्त मौर्य ने तत्कालीन यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को पराजित किया था। संधि हो जाने पर सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त से 500 हाथी लेकर बदले में सिंधु नदी के पश्चिम का क्षेत्र, पूर्वी अफगानिस्तान तथा बलूचिस्तान चंद्रगुप्त को दे दिया तथा अपनी पुत्री हेलेना(कार्नेलिया) का विवाह भी चंद्रगुप्त से कर दिया। सेल्यूकस ने मेगास्थनीज नामक एक दूत भी चंद्रगुप्त के दरबार में भेजा।
मेगास्थनीज ने 4 वर्ष तक चंद्रगुप्त के दरबार में दूत के रूप में अपनी सेवाएं दी। उसने एक पुस्तक इंडिका लिखी जिसमें चंद्रगुप्त के शासनकाल का विस्तृत विवरण उपलब्ध है। फिलार्कस व स्ट्रेबो और जस्टिन ने चंद्रगुप्त को संड्रोकोट्स तथा एरियन तथा प्लूटार्क ने एंड्रोकोटस कहा।
चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य की शासन व्यवस्था का ज्ञान मुख्य रूप से मेगस्थनीज की इंडिका तथा चाणक्य के अर्थशास्त्र से प्राप्त होता है। राजा शासन के विभिन्न अंगों का प्रधान था। मेगास्थनीज के अनुसार राजा दिन में सोता नहीं था। वह दिनभर न्याय और शासन के अन्य कार्यों के लिए दरबार में रहता था। राजा के प्राणों की रक्षा के लिए उचित उपाय किए गए थे। राजा के शरीर की रक्षा अस्त्रधारिणी स्त्रियां करती थी। मेगास्थनीज के अनुसार राजा हर रात अपने शयनकक्ष बदलता रहता था क्योकि उसे प्राणों का भय लगा रहता था। राजा केवल युद्ध, यज्ञ तथा अनुष्ठान, न्याय और शिकार के लिए ही अपने प्रासाद से बाहर आता था। शिकार के समय राजा का मार्ग रस्सियों से घिरा होता था जिसको लांघने पर मृत्युदंड मिलता था।
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चाणक्य द्वारा लिखित 'अर्थशास्त्र' के अनुसार राजा का आदर्श उच्च होता था; प्रजा के सुख में ही राजा का सुख तथा प्रजा के दुख में ही राजा का दुख निहित होता है। मेगस्थनीज की इंडिका के अनुसार राजा की सहायता के लिए एक परिषद गठित थी। बड़े-बड़े विद्वान इस परिषद के सदस्य थे। इस परिषद के द्वारा ही राज्यों के मुख्य पदाधिकारियों का चुनाव किया जाता था; यह बात अप्रमाणित है कि राजा परिषद की सलाह मानने को बाध्य था।
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चन्द्रगुप्त मौर्य साम्राज्य |
चंद्रगुप्त मौर्य के विशाल साम्राज्य में काबुल,हेरात, कंधहार, बलूचिस्तान, पंजाब, गंगा यमुना का दोआब, बिहार, बंगाल तथा गुजरात विन्ध्य व कश्मीर का भूभाग भी सम्मिलित था।चंद्रगुप्त मौर्य ने अपना साम्राज्य पश्चिमोत्तर में ईरान से लेकर पूर्व में बंगाल तक तथा उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में उत्तरी कर्नाटक पर फैलाया था। गिरनार अभिलेख(150 ईसा पूर्व) के अनुसार सौराष्ट्र में पुण्यगुप्त वैश्य चंद्रगुप्त का राज्यपाल था जिसने सुदर्शन झील का निर्माण कराया था।
श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) में मिले शिलालेखों के अनुसार चंद्रगुप्त ने अपने जीवन के अंतिम समय में जैन संत भद्रबाहु से प्रभावित होकर जैन धर्म अपना लिया था तथा जैन मुनि बन गए थे । वह जैन साधु के साथ श्रवणबेलगोला चले आये थे। वे जिस पहाड़ी पर रहते थे उसका नाम चंद्रगिरी था तथा वहीं पर उन्होंने चंद्रगुप्तबस्ति नामक मंदिर भी बनवाया। चंद्रगुप्त ने श्रवणबेलगोला में 298 ईसापूर्व में जैन परंपरा की सल्लेखना (उपवास) विधि द्वारा अपना शरीर त्याग दिया।
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✍Penned By- Shobhit Awasthi
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