20 अगस्त 1917 को तत्कालीन भारत सचिव मांटेग्यू ने 'हाउस ऑफ कॉमन्स' में एक ऐतिहासिक वक्तव्य दिया जिसमें ब्रिटेन के इरादे का बयान दिया था-
"शासन की सभी शाखाओं में भारतीयों को शामिल करना और स्वायत्तशासी संस्थाओं का क्रमिक विकास जिसमें ब्रिटिश भारत के अभिन्न अंग के रूप में उत्तरदाई सरकार की उत्तरोत्तर उपलब्ध हो सके।"
इसी घोषणा को कार्यान्वित करने के लिए मोंटफोर्ड रिपोर्ट 1918 प्रकाशित की गई जो 1919 के अधिनियम का आधार बना।
प्रावधान:
1. केंद्रीय एवं प्रांतीय सरकारों के अधिकारों का स्पष्ट विभाजन कर दिया गया ।
2. केंद्रीय व्यवस्थापिका सभा को द्विसदनीय बनाया गया। भारतीय विधानसभा(निम्न सदन) में कुल 144 सदस्य रखे गए जिनमें 103 सदस्य निर्वाचित और शेष 41 सदस्य वायसराय द्वारा मनोनीत होते थे। सदन का कार्यकाल 3 वर्ष का था। भारतीय राज्य परिषद (उच्च सदन) के कुल सदस्यों की संख्या 60 रखी गई जिनमें 33 निर्वाचित व 27 मनोनीत किए जाते थे। इनका कार्यकाल 5 वर्ष का था। दोनों सदन अपना अध्यक्ष चुनते थे।
3. निर्वाचन प्रत्यक्ष निर्वाचन के आधार पर होना प्रारंभ हुआ।
4. वायसराय विधायिका सभा की राय ठुकरा सकता ठुकरा सकता सकता था।
5. प्रांतों में द्वैध शासन लगा दिया गया । इसमे प्रांतीय विषयों को दो भागों में विभक्त किया गया हस्तांतरित व आरक्षित। हस्तांतरित विषयों पर गवर्नर का शासन होता था और इस कार्य में वह उन मंत्रियों की सहायता लेता था जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी थे। दूसरी और आरक्षित विषयों पर गवर्नर कार्यपालिका परिषद की सहायता से शासन करता था जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी नहीं थी। हालांकि यह व्यवस्था काफी हद तक असफल रही ।
6. केंद्रीय कार्यकारिणी किसी भी प्रकार व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदाई न थी।
7.वायसराय की कार्यकारिणी परिषद के 6 सदस्यों में से (commander-in-chief को छोड़कर) तीन सदस्यों का भारतीय होना आवश्यक था।
8. सांप्रदायिक आधार पर सिखों, भारतीय ईसाइयों, आंग्ल भारतीय और यूरोपीय के लिए भी पृथक निर्वाचन के सिद्धांत को विस्तारित किया गया।
9.इस कानून ने संपत्ति, कर या शिक्षा के आधार पर सीमित संख्या में लोगों को मताधिकार प्रदान किया।
10. भारत संबंधित कार्यों के लिए एक नवीन अधिकारी 'भारतीय हाई कमिश्नर' की नियुक्त की गई।
11. भारत सचिव का वेतन ब्रिटिश राज कोष से दिया जाने लगा।
12. इस अधिनियम के अंतर्गत एक लोक सेवा आयोग का गठन किया गया। अतः 1926 में सिविल सेवकों की भर्ती के लिए केंद्रीय लोक सेवा आयोग की स्थापना हुई।
13. इसमें पहली बार केंद्रीय बजट राज्यों के बजट से अलग कर दिया और राज्य विधानसभाओं को अपना बजट स्वयं बनाने के लिए अधिकृत कर दिया।
1919 के अधिनियम में अनेक खामियां थी। इसने जिम्मेदार सरकार की मांग को पूरा नहीं किया। केंद्र तथा राज्यों के बीच शक्तियों के बंटवारे के बावजूद ब्रिटिश भारत का संविधान एकात्मक राज्य का संविधान ही रहा। द्वैध शासन पूरी तरह विफल रहा। गवर्नर जनरल का वर्चस्व कायम रहा। वित्तीय शक्ति के अभाव में मंत्री अपनी नीतियों को प्रभावी रूप से कार्यान्वित नहीं कर सकते थे। इसके अलावा मंत्री विधानमंडल के प्रति सामूहिक रूप से जिम्मेदार नहीं थे। मंत्रियों को दो मालिकों को खुश करना पड़ा था एक तो विधान परिषद और दूसरा गवर्नर जनरल।
✍✍✍ शोभित अवस्थी
No comments:
Post a Comment