आनुवंशिक अभियांत्रिकी ( Genetic Engineering)
आज का युग टेक्नोलॉजी का युग है आज प्रत्येक क्षेत्र में टेक्नोलॉजी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है वर्तमान में शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र या कार्य हो जिसमे मशीनों, और स्वचलित यंत्रों का प्रयोग ना होता हो
तकनीकी के क्षेत्र में बायोटेक्नोलॉजी के अंतर्गत की जाने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग का स्थान सर्वोपरि है
क्या है यह जेनेटिक इंजीनियरिंग?
जेनेटिक इंजीनियरिंग या आनुवंशिक आभियांत्रिकी विज्ञान का एक आधुनिक अविष्कार है, जिसके अंतर्गत प्राणियों एवं पौधों के डी.एन.ए या जीनोम कोड में हस्तक्षेप करके उसमे बदलाव किया जाता है। इस प्रक्रिया को जेनेटिक इंजीनियरिंग कहा जाता है। जेनेटिक इंजीनियरिंग को हिंदी में आनुवांशिक अभियांत्रिकी के नाम से जाना जाता हैआनुवंशिक अभियांत्रिकी उन तकनीकी प्रक्रियाओं का अध्ययन है जिसके द्वारा अनुवांशिकी पदार्थ डीएनए में आवश्यकता अनुसार कृत्रिम परिवर्तन किए जाते हैं इसके अतिरिक्त डीएनए अणुओं का कृत्रिम रूप से निर्माण किया जाता है जिनमें दो अलग-अलग डीएनए खंडों को जोड़कर नया डीएनए बनाना, डीएनए की मरम्मत करना, डीएनए से कुछ न्यूक्लियोटाइड को हटाना तथा अपनी इच्छा अनुसार नई संरचना वाले डीएनए अणुओ निर्माण करके जीवो में इच्छा अनुसार गुणों को उत्पन्न करना.. अनुवांशिक अभियांत्रिकी का मुख्य आधार है
【यूं ही नहीं... छोटा नागपुर पठार को रूर प्रदेश कहते हैं 】👈 क्लिक करें
आनुवंशिक अभियांत्रिकी का उपयोग
जेनेटिक इंजीनियरिंग का मुख्य उदेश्य जीवो के विषम रोगों का पता लगाना एवं रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना हैआज जेनेटिक इंजीनियरिंग में कृषि के क्षेत्र में, चिकित्सा के क्षेत्र में, प्रदूषण नियंत्रण के क्षेत्र में, व्यवसाय के क्षेत्र में आदि अन्य क्षेत्रों में अपने पांव पसारे है
चिकित्सा के क्षेत्र में जेनेटिक इंजीनियरिंग
जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा निर्मित मानव इंसुलिन'Diabetes mellitus' के उपचार के लिए इंसुलिन हार्मोन का निर्माण पहले सूअर वा मवेशियों का वध करके पैंक्रियाज से प्राप्त किया जाता था किंतु मधुमेह के कुछ रोगियों को इसके सेवन से एलर्जी हो जाती थी।
वर्ष 1883 में ELILILLY कंपनी जो अमेरिका में है, जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से इंसुलिन को E coli से निर्मित किया और इसे Humulin नाम दिया। E coli मे डीएनए कीA वB श्रृंखलाओं को sulphide bonds द्वारा जोड़ने तथा C-peptide segment को अलग करने से मानव निर्मित इंसुलिन का निर्माण हुआ।
जीन चिकित्सा के रूप में जेनेटिक इंजीनियरिंग
मनुष्य जाति में यदि किसी एक जीन में कोई विकार उत्पन्न होता है तो उसके परिणाम स्वरूप हजारों अनुवांशिकी रोग उत्पन्न हो जाते हैं जैसे Haemophilia ,Sickle cell Anemia ,Huntington Chorea ,Leachnyahan Syndromeजेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से विकृत जीन को हटाकर उसके स्थान पर स्वस्थ जीवन को स्थापित किया जा सकता है अतः दोषपूर्ण के स्थान पर शुद्ध स्वस्थ जीवन को स्थापित करना ही चिकित्सा कहलाता है
कृषि के क्षेत्र में जेनेटिक इंजीनियरिंग
कृषि के क्षेत्र में एक ही प्रजाति के पौधों के बीच जीन स्थानांतरण कराकर संकरण कराया जाता है। प्रारम्भ में इस प्रकार का संकरण केवल उन्हीं पौधों तक सीमित था जिनमें लैंगिक प्रजनन पाया जाता है परंतु अब जेनेटिक इंजीनियरिंग के द्वारा दो अलग-अलग प्रजातियों के बीच जीन स्थानांतरण करके संकरण कराया जाता है उसके द्वारा नई प्रजातियां उत्पन्न की जाती है【ताज का शासन... एक ऐसा अधिनियम जिसे भारत के शासन को अच्छा बनाने वाले अधिनियम की संज्ञा हासिल हुई】👈 क्लिक करें
ट्रांसजेनिक पौधों के उत्पादन मे
जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा किसी भी पौधों से जींस को ट्रांसफर करके दूसरे पौधों के डीएनए में जोड़ा जाता है। ऐसे पौधे ट्रांसजेनिक पौधे कहलाते हैं। ट्रांसजेनिक पौधे बैक्टीरिया वायरस शाकनाशी के लिए रोधी होते हैं इन पौधों से प्राप्त फल लंबे समय तक ताजे एवं पोषक बने रहते हैं इन पौधों से उत्पन्न फल अधिक स्वादिष्ट होने के साथ-साथ इनकी पैदावार भी अधिक होती हैजेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा गोल्डन राइस का विकास
जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा विकसित चावल की एक किस्म है..गोल्डन राइस। इसके दाने पीले रंग के होते हैं क्योंकि इसमें विटामिन ए बीटा कैरोटीन पाया जाता है।इसे daffodils के एंजाइम Phytene synthetase के दो जींस तथा एक जींस बैक्टीरियम एग्रोबैक्टेरियम की सहायता से पुरःस्थापित करके विकसित किया गया है।
प्रदूषण नियंत्रण में जेनेटिक इंजीनियरिंग का योगदान
समुद्रों में खनिज तेल के रिसाव, सीवेज, पीडकनाशी,शाकनाशी, भारी धातुएं जैसे पारा, लेड, एलुमिनियम आदि द्वारा उत्पन्न प्रदूषण ने एक विकट समस्या खड़ी कर दी है।अब वैज्ञानिक जेनेटिक इंजीनियरिंग की सहायता से ऐसे सूक्ष्म जीव के विकास में व्यस्त हैं जो इस समस्या का समाधान कर सके वैज्ञानिकों को इस दिशा में सुपरबग नामक बैक्टीरिया के विकास में सफलता मिली है।
सुपरबग पर्यावरण में फैले आविषालु टॉक्सिक पदार्थ को समाप्त कर देता है पर्यावरण में पड़े अपशिष्ट पदार्थों को नष्ट कर देता है जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा विकसित इन जीवाणुओं को सुपरबग कहते हैं
आजकल पानी के जहाज में टैंको की भीतरी सतह पर जमी ग्रीस व अन्य चिकनाई को समाप्त करने के लिए विभिन्न बैक्टीरियल स्ट्रेनों के मिश्रण का उपयोग किया जा रहा है
कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
◆ सफलतापूर्वक क्लोनी कृत प्रथम जंतु भेड़ थी जिसका नाम डॉली था।◆ प्रथम ट्रांसजेनिक गाय का नाम रोजी था।
◆ ट्रांसजेनिक फसल गोल्डन राइस में विटामिन ए भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो रतौंधी दूर करने के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ है।
◆ जीन थेरेपी एक तकनीकी है जो आनुवांशिक विकार को ठीक करने में सहायक सिद्ध होती है।
◆ अनुवांशिक रूप से प्रथम जीव जीवाणु को माना गया है।
◆ आर्कीबैक्टीरिया द्वारा बायोगैस अधिक मात्रा में उत्पन्न किया जाता है।
◆ फॉरेंसिक विज्ञान में डीएनए फिंगर प्रिंटिंग का उपयोग किया जाता है।
◆ डीएनए फिंगर प्रिंटिंग की खोज 1984 में ब्रिटिश लीसेस्टर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक सर एलेक जेफ्रेज ने इसका विकास किया। इस पद्धति में किसी व्यक्ति के जैविक अंशो जैसे-रूधिर, बाल, लार, वीर्य या दूसरे कोशिका-स्नोतों के सहारे उसके डीएनए की पहचान की जाती है।
【कोरोना को कवर करेगा ...ये..!】👈 क्लिक करें
✍✍Penned By - Ankit Yadav
No comments:
Post a Comment