तटवर्ती मैदान

 तटवर्ती मैदान

                      भारत का प्रायद्वीपीय पठार पूर्व तथा पश्चिम में संकरे तटीय मैदान से घिरा हुआ है। इसी तटीय मैदान को क्रमशः पूर्वी तटीय मैदान तथा पश्चिमी तटीय मैदान के नाम से जाना जाता है। 6100 किलोमीटर लंबाई वाले इस मैदानी भाग का निर्माण पठारी नदियों के द्वारा की गई जलोढ़ निक्षेप प्रक्रिया से हुआ है।

तटीय विभाजन

★पूर्वी तटीय मैदान-

पूर्वी घाट तथा बंगाल की खाड़ी के बीच स्थित तटीय मैदान को पूर्वी तटीय मैदान कहते हैं । इसका विस्तार पूर्वी तट के समानांतर ,ओडीशा ,आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु राज्य में है। पूर्वी तटीय मैदान, हुगली नदी के मुहाने से कन्याकुमारी तक लगभग 120 किलो मीटर चौड़ाई में फैला हुआ है। इसके अतिरिक्त यह पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में अधिक चौड़ा है।
                   कृष्णा तथा गोदावरी नदी का डेल्टा क्षेत्र ,पूर्वी तटीय मैदान को दो भागों ,उत्तर तथा दक्षिण, में बांटता है। उत्तरी भाग को “उत्तरी सरकार” तथा दक्षिणी भाग को “कोरोमंडल तट” के नाम से जाना जाता है। इसी कोरोमंडल तट (मुख्यतः तमिलनाडु तट) में लौटते मानसून से सर्वाधिक वर्षा होती है। पूर्वी तटीय मैदान में कहीं-कहीं लैगूनो का निर्माण भी मिलता है जैसे चिल्का ,कोलेरू व पुलिकट झील आदि। चिल्का झील भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है । इसके अतिरिक्त पुलिकट झील में श्रीहरिकोटा द्वीप है ,जहां इसरो का प्रक्षेपण केंद्र; सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र स्थित है।

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प्रादेशिक विभाजन के अनुसार पूर्वी तटीय मैदान को तीन भागों में बांटा जाता है-

• ओडीशा तट या उत्कल समतल
• आंध्र तट या आंध्र समतल
• तमिलनाडु तट या तमिलनाडु समतल
       
                  पूर्वी घाट पर्वत श्रंखला की ढाल कम होने के कारण प्रायद्वीपीय पठार की पूर्ववर्ती नदियों का वेग मंद होता है इसीलिए यह नदियां अपने जलोढ़ निक्षेप को इकट्ठा कर डेल्टा का निर्माण करती हैं। अतः पूर्वी तटीय मैदान का निर्माण सैकड़ों नदियों के डेल्टा से मिलकर हुआ है। इनमें प्रमुख महानदी, कृष्णा, गोदावरी तथा कावेरी आदि नदियों के डेल्टा क्षेत्र सम्मिलित हैं।
               यह डेल्टा क्षेत्र सागर की ओर लगातार वृद्धि कर रहे हैं। यह नदियां अपने जलोढ़ निक्षेप में उपजाऊ मिट्टी बहा कर लाती हैं । जिस कारण यह तटीय मैदान अत्यधिक उपजाऊ, कृषि की दृष्टि से महत्वपूर्ण तथा घनी जनसंख्या का क्षेत्र है। पूर्वी तटीय मैदानों में विशेषकर कावेरी और अन्य नदी घाटी धान की खेती के लिए उपयुक्त है।

★पश्चिमी तटीय मैदान-

पश्चिमी तटीय मैदान, अरब सागर तथा पश्चिमी घाट के बीच स्थित एक संकीर्ण क्षेत्र है। पूर्वी तटीय मैदान की तुलना में इस मैदानी भाग की चौड़ाई कम है । प्रायद्वीपीय पठार का ढाल पूर्व की ओर होना ,यह स्पष्ट करता है कि पूर्वी घाट की तुलना में पश्चिमी घाट अधिक ऊंचा है यही कारण है कि पश्चिमोत्तर नदियां या अरब सागर में गिरने वाली नदियां ,प्रवाह वेग अधिक होने के कारण, एश्चुरी (ज्वारनदमुख) का निर्माण करती है। भरतपूजा ,पेरियार ,शरावती तथा मांडवी आदि पश्चिमी तट पर एश्चुरी  का निर्माण करने वाली प्रमुख नदियां हैं। इस संकरी जलोढ़ पट्टी का विस्तार गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा ,कर्नाटक तथा केरल राज्य में है।

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पश्चिमी तटीय मैदान का विभाजन मुख्यतः तीन भागों में किया गया है-

• गुजरात से गोवा तक के तटीय भाग (गुजरात तट सहित) को कोंकण तट
• गोवा से कर्नाटक के मंगलोर तक के तटीय भाग को कन्नड़ तट
• मंगलौर से कन्याकुमारी तक के तटीय भाग को मालाबार तट
       
        यद्यपि कन्नड़ तट और मालाबार तट  मुख्यतः  कर्नाटक और केरल के तटीय क्षेत्र को ही आच्छादित करते हैं इसीलिए कर्नाटक और केरल के तटीय क्षेत्र को क्रमशः कन्नड़ तथा मालाबार तट कहा जाता है। बेसाल्ट चट्टानों से निर्मित कोंकण तट ही पश्चिमी तटीय मैदान का सर्वाधिक चौड़ाई वाला भाग है।
           मालाबार तट पर पश्च जल तथा लैगून झीलों की प्रधानता है जिनका स्थानीय नाम 'कयाल' है। वेम्बनाड तथा अनाईमुडी मालाबार तट के प्रमुख लैगून झीलों में से एक है। पश्चिमी तटीय मैदान ग्रीष्मकालीन मानसून से ही वर्षा प्राप्त करता है इसके अतिरिक्त यहां रबड़ तथा नारियल इत्यादि की खेती की जाती है।
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